सतत विकास के लिए नेट जीरो एवं ऊर्जा संक्रमण विषय पर आयोजित दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन
जायस,अमेठी
राजीव गाँधी पेट्रोलियम प्रौद्योगिकी संस्थान (आरजीआईपीटी), जायस, अमेठी में सतत विकास के लिए नेट जीरो एवं ऊर्जा संक्रमण विषय पर आयोजित दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आज समापन हो गया। इस संगोष्ठी का आयोजन संयुक्त रूप से भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद् एवं आरजीआईपीटी द्वारा किया गया।
अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में देश-विदेश के कुल 147 शोधार्थियों, प्राध्यापकों एवं उद्योग जगत के विशेषज्ञों ने भाग लिया एवं अपना शोध कार्य प्रस्तुत किया।
इनमें से कुछ प्रतिभागी आस्ट्रेलिया, मस्कट, सउदी अरब एवं मोरक्को से भाग लिया। इस दो दिवसीय कार्यक्रम में कुल पाँच क्षेत्रों यथा- नेट जीरो एवं ऊर्जा संक्रमण, सतत विकास के लिए वित्त व निवेश, ऊर्जा संक्रमण के लिए सामाजिक व लोक सहभागिता, प्रौद्योगिकी व व्यवसाय एवं मानव संसाधन एवं ऊर्जा संक्रमण विषय पर शोध पत्र प्रस्तुत किये गये एवं चर्चा किया।
आज के सत्र में अपना विचार व्यक्त करते हुए दिल्ली प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के प्राध्यापक डॉ. अनुभव गर्ग ने हाइड्रोजन- भविष्य इंधन की संभावना विषय पर अपना शोध कार्य प्रस्तुत किया और कहा कि माननीय प्रधानमंत्री द्वारा वर्ष 2070 तक भारत को नेट जीरो राष्ट्र विकसित करने का जो लक्ष्य रखा गया है।
उसमें हाइड्रोजन इंधन की बहुत बड़ी भूमिका होगी। इसके लिए भारत सरकार ने राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन की स्थापना की है जिसपर लगभग 19000 करोड़ रुपये खर्च किये जाने की योजना है।
इससे एक ओर जहाँ कार्बन डाइऑक्साइड कम करने में सहायता मिलेगी वहीं दूसरी ओर वर्ष 2030 तक 6 लाख नये रोजगार के अवसर सृजित होने की संभावना है।
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान की श्रीमती रेनु सिंह ने कृषि अपशिष्ट से जैव इंधन- सतत विकास के लिए संभावनाएँ विषय पर अपना शोध कार्य प्रस्तुत किया और कहा कि किसानों को अपने कृषि अपशिष्ट को जलाने के बजाय, उसका उपयोग जैव इंधन उत्पादन में करना चाहिए। इससे एक ओर जहाँ पर्यावरण को स्वच्छ रखने में मदद मिलेगी वहीं दूसरी ओर जैव इंधन का उत्पादन कर हम अपनी ऊर्जा जरूरत की पूर्त्ति भी कर सकते हैं।
इस कार्यक्रम में विभिन्न शोध चर्चाओं की अध्यक्षता डॉ. जया श्रीवास्तव, विभागाध्यक्ष व कार्यक्रम- समन्वयक, प्रबंध अध्ययन विभाग, डॉ. रोहित बंसल, कार्यक्रम सह-समन्वयक,डॉ. देबाशीष जेना, सहायक प्राध्यापक एवं डॉ. सरोज मिश्रा द्वारा किया गया।
इसमें एमबीए के छात्र-छात्राओं का सक्रिय सहयोग रहा।
मंडल ब्यूरो चीफ पवन श्रीवास्तव की रिपोर्ट