वास्तविकता से परे हैं सरकार द्वारा गिनाई जा रही उपलब्धियां
लोकसभा चुनाव 2024 के दृष्टिगत जनता को लुभाने का प्रयास जारी
जैसे जैसे 2024 का नजदीक आ रहा है देश भर में तमाम राजनीतिक दल चुनावी पृष्ठभूमि तैयार करने हेतु सक्रिय होते नज़र आ रहे हैं। बात अगर सत्ता पक्ष की करें तो इन दिनों मंत्रियों/विधायकों आदि का भ्रमण अपने अपने क्षेत्रों में बड़ी ही तेज़ी से बढ़ रहा है जो चुनाव तक और भी सक्रियता से बढ़ता रहेगा। यह सभी अपनी सरकार की उपलब्धियां गिनाने में लगे हुए हैं।
गिनाई जा रही कई उपलब्धियां ऐसी भी हैं जिनका जिक्र पहले मात्र चुनावी घोषणा पत्र में ही सुनाई दिया जिनका वास्तविकता से कोई सरोकार नहीं क्योंकि वह सभी घोषणा पत्र के कागजों से दस्तावेजों में दबे कागजों तक ही सीमित रह गई और अब उपलब्धियों में। विकास के नाम पर गड्ढा युक्त सड़कों पर सिर से पांव तक धूल की चादर ओढ़कर जनता को सम्मानित किया जा रहा है। यह भी सत्य है कि बड़े बड़े राजमार्ग बनाए गए हैं क्योंकि वहां से टोल टैक्स के रूप में राजस्व प्राप्त होता है उनमें भी कई राजमार्ग ऐसे भी हैं जो मानकों के अनुरूप न होने पर भी उनपर टोल टैक्स लिया जाता है।
कानून व्यवस्था की अगर बात करें तो भले ही सरकार बड़े बड़े माफियाओं के किले ध्वस्त कर अपनी पीठ थपथपा रही है
किन्तु कानून व्यवस्था के नाम पर आम जनता का शोषण पहले भी होता रहा है और अब भी जारी है। जगह जगह पुलिस चौकी व थाने होने के उपरान्त भी यदि जनता को अपनी फ़रियाद लेकर मुख्यालय से लेकर शासन तक की चौखट पर गुहार लगानी पड़े तो ऐसे में कानून व्यवस्था की वास्तविकता का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। यातायात व्यवस्था के नाम पर अच्छी सड़कें हो न हो, पार्किंग व्यवस्था भले ही न हो किन्तु व्यवस्था के नाम पर चालान कट जाता है।
नियमों का पालन सभी को करना चाहिए किन्तु दुर्घटना में जान का जोखिम कम करने के साथ ही दुर्घटनाओं का जोख़िम कम करने का प्रयास भी किया जा सकता है इससे जान का जोख़िम स्वतः कम हो जाता परन्तु ऐसा करने से कोई राजस्व की प्राप्ति तो होना नही तो भला कोई भी सरकार इस पर विचार क्यों करे। राशन, मोबाइल, साइकिल, लैपटॉप जैसी मुफ़्त की रेवड़ियां बांटने से बेहतर था कि उसी पैसों का उपयोग करके कई संयंत्र स्थापित कर लोगों को रोज़गार उपलब्ध करा दिया जाता तो शायद आम जनता स्वाभिमान के साथ अपने परिवार का भरण पोषण के साथ उन भौतिक संसाधनों का उपयोग कर पाता और देश भी विकासशील से विकसित हो जाता कदाचित बाहर से निवेशकों को बुलाने की आवश्यकता भी न होती। मंत्रियों, विधायकों और सांसदों की विलासिता पर हो रहे खर्चे पर नियंत्रण कर दिया जाता तो जनता को अच्छी शिक्षा व अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराई जा सकती हैं। भले ही सरकार के पास सेवानिवृत्ति पश्चात् पेंशन देने का बजट न हो परन्तु जनता को मुफ्तखोर बनाने तथा विधायकों और सांसदों को पेंशन देने के लिए भरपूर बजट है।
वैसे भी चुनाव जीतते ही कुबेर का खज़ाना इन नेताओं के लिए खुल ही जाता है या यूं कहें कि सरकारें विकास के नाम पर वही कार्य करती हैं जिनसे राजस्व आता रहे और उनकी अय्याशियां चलती रहें।
विकास श्रीवास्तव की रिपोर्ट