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मनुष्य में देवत्व का उदय ही गायत्री परिवार का उद्देश्य


मनुष्य में देवत्व का उदय ही गायत्री परिवार का उद्देश्य

तिलोई । 28 मई 2024

हनुमान गढ़ी तिलोई में चल रहे पावन प्रज्ञा पुराण के दूसरे दिन कथा वाचक सुषणा तिवारी ने बताया कि परम पूज्य गुरुदेव पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य ने मनुष्य जीवन का उद्देश्य बताते हुए कहा है कि मनुष्य एक अनगढ़ किस्म का पशु ही तो है।

जब वह ध्यान करता है, यज्ञ करता है, श्रेष्ठ कार्य करता है तो उसके अंदर की प्रसुप्त शक्तियां अपने आप जागृत होने लगती हैं और फिर वह इंसान इंसान नहीं रह जाता देवता बन जाता है। उसके अंदर का आत्म बल जाग जाता है फिर वह असंभव कार्य करके दिखाता है जो मानव अनुमान से परे है।

परम पूज्य गुरुदेव ने कहा कि इस संसार में तीन स्तर के व्यक्ति पाए जाते हैं जिनकी तुलना हम एक छोटे से बीज से करेंगे। एक छोटा सा बीज होता है जब वह गलता है तो अपने जैसे असंख्य बीजों को जन्म दे देता है यह बीज की प्रथम गति है, जो सबसे श्रेष्ठ और उत्तम है।

दूसरे स्तर का बीज जो पिसकर आटा बन जाता है और उदर पूर्ति के काम आता है। तीसरे स्तर का बीज ना तो गल कर असंख्य बीजों को जन्म देता है और न ही पिस कर उदर पूर्ति के काम आता है।

वह किसी सड़न सीलन युक्त स्थान में पड़ा रहता है जो अंत में नष्ट हो जाता है। बीज की सबसे निकृष्ट स्थिति यही है।

इसी तरह परम पूज्य गुरुदेव ने तीन स्तर के व्यक्तियों का वर्णन किया है प्रथम स्तर के व्यक्ति होते हैं जो गायत्री महामंत्र के अमृत का पान करके खुद देवता बन जाते हैं तो अपने जैसे असंख्य व्यक्तियों को देवता बना देते हैं।

वे प्रकाश स्तंभ की तरह होते हैं जो खुद प्रकाशित होते हैं और दूर-दूर तक प्रकाश बिखेरते हैं । उन्हीं को पैगंबर, मसीहा, युग दूत, समाज सुधारक कहते हैं । यह सबसे श्रेष्ठ और उच्च कोटि के व्यक्ति होते हैं और हम सब उसे स्तर का बन सकें, यही गुरुदेव का सपना और संकल्प है।

मनुष्य में देवत्व का उदय और धरती पर स्वर्ग का अवतरण के उद्देश्य से ही गायत्री परिवार की स्थापना की गई और युग निर्माण योजना का सूत्रपात हुआ।
दूसरे स्तर के व्यक्ति वह होते हैं जो पारिवारिक परिधि में बंधे रहते हैं ।

भले समाज में आग लगी हो हमारा घर तो सुरक्षित है। ऐसी उनकी विचारधारा होती है। उन्हें शास्त्रों में नर पशु कहा गया है

जिनका उद्देश्य खाना पीना और सोना होता है। तीसरे स्तर के व्यक्ति वह होते हैं जो स्वार्थपरता के गहरे अंधकार में डूबे होते हैं।अपने माता-पिता का त्याग कर देते हैं उन्हें शास्त्रों में नर पिशाच कहा गया है ।

हम सबको प्रथम गति का ही वरण करना है और भगवान के साथ कदम से कदम मिलाकर उनकी बनाई दुनिया को सुंदर बनाना है ।

यही हमारे जीवन का उद्देश्य है ।
मनुष्य जीवन की गौरव गरिमा भक्ति का सही स्वरूप और परम पूज्य गुरुदेव के विशेष सूत्रों को बताते हुए कथा का समापन हुआ ।

संगीत टोली में जगन्नाथ व महिमा तिवारी ने प्रज्ञा गीत “वह कैसा मानव जो केवल स्वार्थ हेतु खाप जाए” के माध्यम से लोगों को झकझोरा।

प्रातः काल की बेला में आयोजित गायत्री महायज्ञ में सैकड़ों श्रद्धालुओं ने यज्ञ किया तथा विभिन्न संस्कार भी संपन्न कराये गये।

मंडल ब्यूरो चीफ पवन श्रीवास्तव की रिपोर्ट

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